Monday 2 January 2017

प्राचीन द्रुपदगढ़ (कम्पिल) में आराध्य

कल न्यू ईयर के पहले दिन मैं अपने बाबा-दादी और मम्मी-पापा के साथ कम्पिल घूमने गया था. मालूम है
कम्पिल में नवनिर्मित खंडीय मंदिर में मैं अपने बाबा-दादी और मम्मी के साथ
आपमें से कई लोंगो को कम्पिल के बारे में कुछ पता नहीं होगा, तो चलो मैं बताता हूँ.
कम्पिल का इतिहास
कम्पिल एक महाभारत कालीन नगर है, आपने द्रौपदी का नाम तो सुना ही होगा, हाँ-हाँ महाभारत वाली द्रौपदी, वह इसी कम्पिल की थी. जी हाँ कम्पिल का प्राचीन नाम "द्रुपदगढ़" है. प्राचीन काल में यह पांचाल प्रदेश की राजधानी थी और राजा द्रुपद यहाँ शासन करते थे.
मंदिर के दरवाजों पर शानदार नक्काशी 
    इसके नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में 'कंपिला' रूप में मिलता है। बहुत संभव है, पुराणों में वर्णित पंचाल नरेश भृम्यश्व के पुत्र कपिल या कांपिल्य के नाम पर ही इस नगरी का नामकरण हुआ हो। महाभारत काल से पहले पंचाल जनपद गंगा के दोनों ओर विस्तृत था। उत्तर-पंचाल की राजधानी अहिच्छत्र और दक्षिण पंचाल की कांपिल्य थी। दक्षिण पंचाल के सर्वप्रथम राजा अजमीढ़ का पुराणों में उल्लेख है। 
 इसी वंश में प्रसिद्ध राजा नीप और ब्रह्मदत्त हुए थे। महाभारत के समय द्रोणाचार्य ने पंचाल नरेश द्रुपद को पराजित कर उससे उत्तर-पंचाल का प्रदेश छीन लिया था। इस प्रसंग के वर्णन में महाभारत में कांपिल्य को दक्षिण पंचाल की राजधानी बताया गया है। उस समय दक्षिण पंचाल का विस्तार गंगा के दक्षिण तट से चंबल नदी तक था। ब्रह्मदत्त जातक में भी दक्षिण पंचाल का नाम कंपिलरट्ठ या कांपिल्य राष्ट्र है। 
जैन समाज का भी तीर्थ है कम्पिल
कम्पिल स्थित प्राचीन रामेश्वर नाथ मंदिर
कम्पिल स्थित प्राचीन रामेश्वर नाथ मंदिर
       वर्तमान के चौबीस तीर्थंकरों में से 13 वें तीर्थंकर 1008 भगवान ‘‘विमलनाथ’’ की जन्मभूमि के साथ-साथ यहाँ उनके चार कल्याणक हुए हैं। पिता श्री महाराज कृतवर्मा के राजमहल एवं माता जयश्यामा के आंगन में वहाँ 15 माह तक कुबेर ने रत्नाव्रष्टि की तथा सौधर्म इन्द्र ने कम्पिल नगरी में माघ शु. 4 को आकर तीर्थंकर के जन्मकल्याणक का महामहोत्सव मनाया था पुन: युवावस्था में विमलनाथ तीर्थंकर का विवाह हुआ और दीर्घकाल तक राज्य संचालन कर उन्होंने माघ शु. चतुर्थी को ही अपराण्ह काल में सहेतुक वन में जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मोक्षमार्ग का प्रवर्तन किया था। उसके बाद उसी कम्पिल के उद्यान में ही माघ शुक्ला षष्ठी को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर समवसरण की रचना हुई थी। तब उन्होंने दिव्यध्वनि के द्वारा संसार को सम्बोधन प्रदान किया था।
जैन मंदिर -जैन तीर्थ कम्पिल
 
   नूतन रूप में वहाँ एक श्वेताम्बर मंदिर और उनकी धर्मशाला भी है। हिन्दुओं तथा जैनियों के ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने कम्पिल जी को पर्यटन केन्द्र घोषित कर दिया है तथा उसके विकास हेतु सरकारी स्तर पर कई योजनाएँ चल रही हैं। वहाँ भगवान विमलनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा विराजमान है।
    वर्तमान समय में कम्पिल जी तीर्थक्षेत्र पर जैन आबादी न होने से यह क्षेत्र जैनत्व स्तर पर विकास की ओर उन्मुख नहीं हो सका है किन्तु वहाँ की कार्यकारिणी ने कुछ नूतन योजनाएँ प्रारंभ की हैं ताकि तीर्थक्षेत्र का विकास और विस्तार होकर अनूठा एवं अनुपम ध्यान-आराधना का स्थल बन सके।

प्रभु चरणों में
यहाँ 1400 वर्ष से भी प्राचीन देवों द्वारा निर्मित एक दिगम्बर जैन मंदिर है। जिसमें गंगानदी के गर्भ से प्राप्त चतुर्थकालीन श्यामवर्णी भगवान विमलनाथ की प्रतिमा विराजमान है और दिगम्बर जैन शिल्पकला
की प्राचीनता का दिग्दर्शन करा रही है। यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ तीन दिगम्बर जैन अतिथि गृह उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटन विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए एक आधुनिक धर्मशाला बनी है।












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